पर्यावरण के अनुकूल ट्रांसफार्मर
ट्रांसफार्मर एक ऐसा विद्युत उपकरण है जिसकी विद्युत वितरण कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका है ।ट्रांसफार्मर विद्युत शक्ति के वोल्ट को आवश्यकतानुसार कम या अधिक करता है जिससे विद्युत ऊर्जा का उपयोग सुविधाजनक हो जाता है
सामान्यतः ट्रांसफार्मर का उपयोग पवन ऊर्जा संयंत्र , सौर ऊर्जा संयंत्र , सिंचाई संयत्र , विद्युत संयंत्र , हॉस्पिटल , रेलवे , उद्योग आदि क्षेत्रों में होता है । ट्रांसफार्मर की आवश्यकता व उपयोगिता के आधार पर विभिन्न श्रेणियाॅं होती है किंतु खनिज तेल के माध्यम से संचालित होने के कारण इन सभी ट्रांसफॉर्मर्स का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । पर्यावरण के अनुकूल ट्रांसफार्मर यानि ग्रीन ट्रांसफार्मर की अवधारणा इसी कारण विकसित हुई है । ग्रीन ट्रांसफॉर्मर्स अर्थात कृषि या वानिकी के माध्यम से प्राप्त उपज से निकाले गए तेल से संचालित किए जाने वाले ट्रांसफार्मर ।
पर्यावरण की दृष्टि से विद्युत उपकरणों से उत्पन्न होने वाले कार्बनिक तत्वों के दुष्प्रभाव सर्वविदित हैं । इन्हीं तत्वों को कम अथवा समाप्त करने की दिशा में ग्रीन ट्रांसफॉर्मर्स उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं ।
ग्रीन ट्रांसफॉमर्स के संपूर्ण संयोजन को पर्यावरण के अनुकूल बनाए रखने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण तत्व है , वह है उस में प्रयुक्त होने वाला तेल जो खनिज तेल ना होकर जैविक ( ग्रीन )होता है जो कृषि या वानिकी उपज के माध्यम से प्राप्त होता है । यही जैविक तेल ट्रांसफार्मर को पर्यावरण के अनुकूल बना सकता है और कार्बन के उत्सर्जन को कम कर सकता है । जैविक तेल खनिज तेल की तुलना में कम ज्वलनशील होने के कारण कार्बन उत्सर्जन को तो कम करता ही है साथ ही अग्नि प्रसार की संभावना को भी न्यून करता है अर्थात कम जोखिम कारक भी है ।
ट्रांसफार्मर में उपयोग किए जाने वाले तेल में विद्युत अवरोधी गुण तो होना ही चाहिए तथा उसे उच्च तापमान पर संतुलित भी रहना चाहिए । प्राकृतिक तेलों में यह गुण स्वाभाविक रूप से पाया जाता है । फायर कोड़ के अनुसार यह आवश्यक है कि किसी भी भवन में लगे हुए ट्रांसफार्मर में कम ज्वलनशील तेल का उपयोग किया जाए जो कि प्राकृतिक ( जैविक / ग्रीन ) ऑयल के उपयोग से ही संभव है ।
प्राकृतिक / ग्रीन / जैविक तेल को एस्टर ऑयल भी कहा जा सकता है , क्योंकि सामान्यतः यह तेल इसी प्रजाति के पौधों से उत्पन्न बीजों से प्राप्त होता है । अरंडी , जेट्रोफा , ट्रोफा मिथाइल , ईस्टर , रतनजोत आदि इसी प्रजाति के बीज हैं जो भारत में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं । इसी के साथ महुआ बीज , करंज , राइस ब्रान आइल आदि तेल भी वैकल्पिक रूप से उपयोगी हो सकते हैं ।
जेट्रोफा / अरंडी ( केस्टर ) के तेल का क्वथनांक 313° सेंटीग्रेड व घनत्व 961 किलोग्राम प्रति घन मीटर होने के कारण ऊर्जा के स्रोत के रूप में यह अधिक उपयोगी सिद्ध होता है ।
एस्टर आइल प्राकृतिक होने के कारण खनिज तेल की तुलना में कम हानिकारक होता है और बायोडिग्रेडेबल होता है जो पर्यावरण जोखिम को कम करता है । इसके प्रयोग से ट्रांसफार्मर के रखरखाव व्यय में भी कमी लाई जा सकती है क्योंकि कम शोर व कम तापमान निर्माण के कारण ट्रांसफार्मर का जीवनकाल बढ़ता है , उसकी रेटिंग में वृद्धि होती है । ट्रांसफॉमर्स के कम व्यय में संचालन करने , संभावित क्षति को कम करने व उसकी कार्यक्षमता में वृद्धि करने की दृष्टि से जैविक तेल की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है ।
प्राकृतिक रूप से कृषि /वानिकी उपज के माध्यम से उपलब्ध बीजों की प्रोसेसिंग से प्राप्त जैविक तेल भारत में प्राचीन काल से ही ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में प्रचलित रहे हैं । यही नहीं बल्कि यह पदार्थ पूर्ण रुप से निरापद , हानिरहित , पर्यावरण के अनुकूल व प्रदूषण रहित होने के कारण सार्वभौमिक व सर्वकालिक रूप से ऊर्जा के जैविक स्रोत के रूप में निरंतर उपयोग में लिए जाते रहे हैं ।
ट्रांसफॉमर्स को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए नेप्था ऑयल या चीड़ ऑयल का भी उपयोग ग्रीन आइल के रूप में किया जा सकता है , क्योंकि ये तेल विद्युत के कुचालक होते हैं किंतु ऊष्मा के सुचालक होते हैं और इनमें सामान्यतः आग नहीं लगती है । बहुत अधिक ताप पर भी इन तेलों के गुणों में बदलाव नहीं होता है और ये तेल ट्रांसफॉमर्स के शीतलन में भी सहायक होते हैं ।
ट्रांसफॉमर्स में खनिज तेलों का उपयोग होने से हमें विदेशी आयातित तेलों पर निर्भर रहना पड़ता है , जबकि जैविक तेलों के उपयोग से देश की अनुपयोगी व कम उपजाऊ भूमि पर कृषि व वृक्षारोपण को प्रोत्साहन मिलने से हम आत्मनिर्भर बनेगें व हमारे विदेशी मुद्रा भंडार, स्वरोजगार , प्रति व्यक्ति आय आदि पर भी सकारात्मक प्रभाव पर सकता है ।
तेजी से प्रदूषित हो रहे वैश्विक वातावरण की रक्षा की दृष्टि से ग्रीन ट्रांसफार्मर (पर्यावरण के अनुकूल ट्रांसफार्मर ) का भविष्य न केवल उज्जवल है बल्कि इस अवधारणा को तीव्र गति से साकार कर उसे मूर्त रूप देना आवश्यक ही नहीं बल्कि वर्तमान समय की भी मांग है ।